रूपरेखा-(1) भूमिका, (2) आधुनिक भारत में नव-निर्माण की विभिन्न दशाएँ और उनमें विद्यार्थियों का योग, (3) उनका विवेकपूर्ण सहयोग, (4) सहयोग से लाभ, (5) उपसंहार।
सैकड़ों वर्षों की परतन्त्रता के बाद हमारा देश स्वतन्त्र हुआ। पराधीनता की स्थिति में भारतवासियों को स्वेच्छापूर्वक अपनी उन्नति करने का अवसर प्राप्त नहीं था। विदेशी सरकार के दबाव के कारण भारतीय अपनी योजना के अनुसार कार्य नहीं कर पाते थे। देश में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप में सरकार का दबाव अवश्य बना रहता था। उस समय विद्यार्थियों का योग केवल उत्कृष्ट अधिकारी बनकर शासन को दृढ़ बनाये रखना था। आज की बदलती हुई परिस्थितियों में किसी भी देश का भविष्य उस देश के विद्यार्थियों के ऊपर निर्भर है। विद्यार्थी वर्ग ही एक ऐसा वर्ग है जो हर क्षेत्र में पहुँच सकता है। भारत का नव-निर्माण विद्यार्थियों के उचित और पूर्ण सहयोग के बिना सफलतापूर्वक पूर्ण नहीं हो सकता। इस देश के नव-निर्माण में विद्यार्थियों का योगदान आवश्यक है।
मानव अपनी आवश्यक सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए उसी की खोज में लगा रहता है। वर्तमान समय वैज्ञानिक तथा पूँजीवादी युग के नाम से जाना जाता है। भारत में वैज्ञानिक तथा आर्थिक उन्नति अत्यन्त आवश्यक है। भारत में प्राकृतिक साधन तो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, पर वैज्ञानिक दोनों ही क्षेत्रों में पिछड़े हुए हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश में नव-निर्माण का कार्य आरम्म हो गया है। पर इसकी अन्तिम सफलता विद्यार्थी वर्ग पर निर्भर करती है, विद्यार्थी को पूरी लगन व श्रद्धा के साथ देश के नव-निर्माण का कार्य करना होगा, तभी देश उन्नति की ओर अग्रसर होगा। वर्तमान समय में कारखानों का निर्माण हो रहा है। विद्युत् शक्ति का उत्पादन हो रहा है। कृषि, व्यवसाय, यातायात तथा वैज्ञानिक अनुसन्धान स्थापित करने के लिए अनेक योजनाएँ बनायी जा रही हैं, पर इन सबके बाद इसकी अन्तिम सफलता विद्यार्थी वर्ग पर ही निर्भर है। सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में भी परिवर्तन के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। समाज में कुछ दुर्गुण हैं। उन्हें दूर करना अत्यन्त आवश्यक है, जिससे समाज के ढाँचे को बिगड़ने से बचाया जा सके। कोई भी सुधार अन्धानुकरण के आधार पर नहीं होना चाहिए। सुधारों के भावी परिणामों को दृष्टि में रखकर बढ़ना आवश्यक है। भारतीय धर्म तथा संस्कृति की मूल विशेषताओं को ध्यान में रखकर
उपयोगी सुधार होना चाहिए। इन सभी का अन्तिम परिणाम तो विद्यार्थी वर्ग को पूर्णतया भोगना
पड़ेगा। अत: उन्हें बुद्धि से कार्य करना चाहिए । विद्यार्थी वर्ग ही सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में क्रान्ति
ला सकते हैं।
संसार की राजनैतिक मान्यताएँ बदल रही हैं । प्रजातान्त्रिक भावना का विकास हो रहा है व्यक्तिवादी दृष्टिकोण बदलता जा रहा है। एक पक्ष साम्यवादी विचारधारा का है, जिसमें व्यक्ति नहीं राष्ट्र सर्वोपरि है। सारा विश्व इन्हीं विचारधाराओं से प्रभावित है। आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि आज का विद्यार्थी और कल का नागरिक अपने देश की परिस्थितियों के अनुकूल राजनैतिक विचारों अपनाये। उसका दृष्टिकोण समन्वयवादी होना चाहिए, जिसमें किसी विचारधारा का बहिष्कार केवल इसलिए न हो कि वह पुरानी है अथवा किसी विचारधारा को केवल इसलिए न स्वीकार किया जाय कि वह नई है।
संसार की राजनीति इतनी तीव्रता से गतिशील है कि यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि कौन-सी बात सही है, इस उलझन की स्थिति से निकलने के लिए विवेकपूर्ण निर्णय की आवश्यकता है। आज विद्यार्थी पर बड़ा उत्तरदायित्व है कि वह अपने विवेक से सही व गलत का निर्णय करे और देश के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयत्नशील हो। भारत एक ऐसा देश है जहाँ जनसंख्या का बड़ा भाग गाँव में रहता है। गाँव के विकास के बिना भारत के विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज के नवयुवक पर सबसे बड़ा उत्तरदायित्व गाँवों के विकास का है। इसके लिए उन्हें शहर के विलासितापूर्ण जीवन को छोड़कर ग्रामीण अंचल में जाना होगा, उनको आधुनिक विचारधारा एवं सहकारिता की भावना का प्रचार करना होगा। हमारे गाँवों को अन्धविश्वास और अवैज्ञानिक दृष्टिकोण से मुक्त करना होगा। उन्हें प्रगतिशील बनाना होगा।
आज के विद्यार्थियों की पीढ़ी के हाथों में कल के देश की बागडोर आने वाली है, उन्हीं में से राजनीतिक नेता होंगे, अधिकारी होंगे, उद्योगपति होंगे और किसान, मजदूर भी होंगे। देश उनसे यह अपेक्षा करता है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वे नये उत्साह और नई विचारधारा के साथ प्रवेश करेंगे। देश को नई दिशा प्रदान करेंगे। सरकार ने देश के नवनिर्माण के लिए अनेक योजनाएँ बनाई हैं, उन कागजी योजनाओं का मूल्य नहीं यदि उनको पूरा जन-सहयोग न मिले। गाँवों की पिछड़ी जनता से अधिक आशाएँ नहीं की जा सकतीं। इन योजनाओं को सफलता के लिए देश की निगाहें विद्यार्थियों पर टिक जाती हैं। विद्यार्थी वर्ग यदि विद्याजेन के साथ-हो-साथ देश की प्रगति की दिशा में नहीं साचिता तो यह उसका अनुत्तरदायित्वपूर्ण कार्य ही कहा जायेगा।
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