-मानव ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नये-नये आविष्कार किये हैं। इस शताब्दी में विज्ञान ने भारी प्रगति की है और संसार का नक्शा ही बदल दिया है।
विज्ञान ने हमारी बड़ी-से-बड़ी और छोटी से छोटी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति की है। उसने मानव जीवन में अधिक आनन्द बढ़ाया है। अंधे को आँखें, बहरे को कान, पंगु को पैर दिये हैं और मनुष्य को पक्षियों के समान आकाश में उड़ने की सुविधा दी है। मनुष्य जल पर भी चल सकता है । वैज्ञानिक उपकरणों के सहारे आज हम सैकड़ों मील दूर बैठे हुए अपने किसी मित्र से बातचीत कर सकते हैं।
(1) मनोरंजन के क्षेत्र में-मनोरंजन की आधुनिक वस्तुएँ विज्ञान की ही देन हैं । सिनेमा, टेलीविजन, टेपरिकार्डर, रेडियो आदि के माध्यम से हम मनोरंजनार्थ प्रस्तुत की जाने वाली सामग्री देख सुन सकते हैं। हमारी शिक्षा, संस्कृति, आचार विचार पर भी इसका प्रभाव पड़ा है।
(2) चिकित्सा के क्षेत्र में-स्वास्थ्य और चिकित्सा के क्षेत्र में भी विज्ञान ने मानव को बड़ा लाभ पहुंचाया है। खतरनाक रोगों पर काबू पा लिया गया है। कई प्रकार के टीकों का आविष्कार हो चुका है। एक्स-रे द्वारा तो शरीर का भीतरी भाग तक अच्छी तरह से देखा जा सकता है, शल्य चिकित्सा का भी अच्छा विकास हुआ है। अब तो विज्ञान मौत को भी जीतने का प्रयास कर रहा है।
(3) कृषि के क्षेत्र में- कृषि और उद्योग-धन्धों के विकास में भी विज्ञान ने हमारी बड़ी मदद की है। उसने नलकूप, ट्रैक्टर, वैज्ञानिक खाद आदि ऐसे अनेक उपकरण निर्मित किये हैं जिनके कारण उत्पादन अनेक गुना बढ़ गया है। ट्रैक्टर, सिंचाई के पम्प, बीज बोने से लेकर काटने और साफ करने तक के यंत्र, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक दवाईयाँ आदि विज्ञान के कारण सम्भव हो सकी हैं।
(4) आवागमन के क्षेत्र में-आज संसार की दूरी कम हो गयी है। वसुधैव-कुटुम्बकम् को भावना साकार हुई हैं। आवागमन के द्रुतगामी साधनों के कारण आज मनुष्य दिल्ली में भोजन करता है, मुम्बई जाकर पानी पीता है और कोलकाता जाकर शयन करता है। इंग्लैण्ड, अमेरिका, रूस आदि देशों की यात्रा अब स्वप्न नहीं रह गयी है। यात्रा द्रुत, सुगम, सुखद और सुरक्षित हो गयी है।
(5) अन्य क्षेत्रों में-विज्ञान ने मानव जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। गैस का चूल्हा, विद्युत् चूल्हा, रेफ्रीजरेटर, बिजली का पंखा आदि कई वस्तुएँ हमारे दैनिक जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। नई-नई मशीनों का चलन हो गया है।
(6) अन्तरिक्ष में विज्ञान-वैज्ञानिकों ने आर्यभट्ट,भास्कर, रोहिणी, इन्सैट के उपग्रह अन्तरिक्ष में स्थापित कर अपनी श्रेष्ठता प्रतिपादित कर दी हैं। मानव चन्द्र यात्रा कर आया है अब मंगल और दूरस्थ ग्रहों की बारी है।
अभिशाप विज्ञान ने मनुष्य को अनेक प्रकार से लाभान्वित किया हैं, वहीं कई प्रकार से अहित भी किया है। अनेक लाभकारी आविष्कारों के साथ उसने भयंकर से-भयंकर शस्त्रों का निर्माण किया है। ये अस्त्र -शस्त्र इतने घातक होते हैं कि देखते-ही-देखते लाखों व्यक्तियों को मौत के घाट उतार सकते हैं। हिरोशिमा और नागासाकी में अणु बम का दुष्परणाम हम देख ही चुके हैं। अब तो अणु बम से भी अधिक भयंकर, अधिक विनाशकारी शस्त्रास्त्र बन चुके हैं, जिनका कि अभी हाल ही में हुए युद्ध में इराक तथा बहुराष्ट्रीय सेनाओं ने डटकर प्रयोग किया था। इस प्रकार इन अस्त्रों के कारण मानवता के लिए एक जबरदस्त खतरा पैदा हो गया है।
विज्ञान ने बड़ी-बड़ी मशीनों और कारखानों के द्वारा उत्पादन अवश्य बढ़ाया है, लेकिन बेरोजगारी, स्पर्धा, शोषण, अस्वास्थ्य आदि की समस्याएँ भी पैदा की हैं। उद्योगों का बड़े पैमाने पर केन्द्रीयकरण हो गया है, समाज पूँजीपति और श्रमिक वर्ग में बँट गया है। इन्हीं कारखानों ने बड़े-बड़े देशों में स्पर्धा की भावना पैदा की जिसके परिणामस्वरूप युद्ध होते रहते हैं।
उत्पादन वृद्धि के साथ बेकारी भी बढ़ रही है। भोपाल में दिसम्बर 1984 में यूनियन कार्बाइड कारखाने में गैस रिसने के कारण 25000 से अधिक लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। विज्ञान के कारण समाज में भौतिकवाद और विलासिता की भावना भी बढ़ी है। आज का मनुष्य भौतिक सुख सुविधाओं के पीछे पागल है। जितनी सुविधाएँ बढ़ रही हैं मनुष्य उतना ही विलासी बनता जा रहा है। विलासिता के कारण शक्ति का क्षय होता जा रहा है। आज मनुष्य शारीरिक दृष्टि से पहले की अपेक्षा बहुत कमजोर हो गया है। विभिन्न प्रकार के बढ़ते हुए प्रदूषण ने भी मानव जीवन को बहुत प्रभावित किया है ।
उपसंहार - विज्ञान की उपलब्धियाँ एक ओर आनन्दकारी हैं, तो दूसरी ओर विध्वंसकारी भी।
आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी प्रवृत्तियों का परिमार्जन करें और विज्ञान द्वारा प्रदत्त वस्तुआ का उपयोग मानवता की रक्षा, खुशहाली और कल्याण के लिए करें। विज्ञान, विनाश का नही सृजन का साधन बनाया जाना चाहिए। विज्ञान दोषी नहीं, दोषी है मनुष्य जो इसका दुरुपयोग करता है।
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